ऐसा जादू किया बात ही बात में नींद आती नहीं अब मुझे रात में कौन शाइ'र तिरे हुस्न की आँच को ढाल पाया कभी अपने नग़्मात में भीनी भीनी वो ख़ुशबू तिरे ज़ुल्फ़ की आ ही जाती है मेरे ख़यालात में कोई शाइ'र नहीं बस तुझे देख कर लहर उठने लगी मेरे जज़्बात में तू नहीं तो शफ़क़ में भी सुर्ख़ी नहीं फूल भी हो गए ज़र्द बाग़ात में तेरे 'मक़्सूद' की है ये हसरत फ़क़त देख ले तुझ को रुख़्सत के लम्हात में