ये ख़ज़फ़ मेरे लिए हैं ये गुहर मेरे लिए मैं हूँ मख़दूम-ए-जहाँ है ख़ुश्क-ओ-तर मेरे लिए जन्नत-ओ-दोज़ख़ बने हैं अर्श पर मेरे लिए और ज़मीं पर एहतिमाम-ए-ख़ैर-ओ-शर मेरे लिए अर्श-ए-आज़म तक मिरी परवाज़ है ऐ बे-ख़बर और नहीं है एहतियाज-ए-बाल-ओ-पर मेरे लिए आरज़ू है अज़्म-ओ-हिम्मत है दिल-ए-पुर-शौक़ है दोस्तो काफ़ी है ये रख़्त-ए-सफ़र मेरे लिए आज मुझ पर हँस रहे हैं लोग इस का ग़म नहीं एक दिन होगी सभी की आँख तर मेरे लिए रफ़्ता रफ़्ता हो गए नाराज़ ऐ 'मक़बूल' सब ज़हर भी अब हो गया है बे-असर मेरे लिए