ऐसा लम्हा उधार दे कोई जिस में सदियाँ गुज़ार दे कोई बाद मुद्दत के ख़त लिखे वो मुझे और कबूतर को मार दे कोई ये जो सरदार बन के बैठा है उस की पगड़ी उतार दे कोई मस्त रक्खे जो होश में भी मुझे अब तो ऐसा ख़ुमार दे कोई क्या ख़बर हादसाती दुनिया में कब कहाँ मुझ को मार दे कोई एक वा'दा कि जिस के साए में उम्र सारी गुज़ार दे कोई दश्त को घर बना के बैठा हूँ इस को आ कर सँवार दे कोई