ऐसा नहीं हम से कभी लग़्ज़िश नहीं होती पर झूटी कभी हम से नुमाइश नहीं होती कलियाँ भी नई सूख के मुरझा गईं अब तो मुद्दत से मिरे शहर में बारिश नहीं होती धरती कभी काँपी कभी आकाश भी लर्ज़ा इक शख़्स को लेकिन ज़रा जुम्बिश नहीं होती खोदोगे ज़मीं रोज़ तो निकलेगा दफ़ीना कोशिश जिसे कहते हैं वो कोशिश नहीं होती माना तिरे दर से कोई ख़ाली नहीं जाता 'सैफ़ी' ये मगर कोई नवाज़िश नहीं होती