ऐसा तिरा रहगुज़र न होगा हर गाम पे जिस में सर न होगा क्या इन ने नशे में मुझ को मारा इतना भी तू बे-ख़बर न होगा धोका है तमाम बहर दुनिया देखेगा कि होंट तर न होगा आई जो शिकस्त आईने पर रू-ए-दिल यार इधर न होगा दशनों से किसी का इतना ज़ालिम टुकड़े टुकड़े जिगर न होगा अब दिल के तईं दिया तो समझा मेहनत-ज़दों के जिगर न होगा दुनिया की न कर तू ख़्वास्त-गारी उस से कभू बहरा-वर न होगा आ ख़ाना-ख़राबी अपनी मत कर क़हबा है ये उस से घर न होगा हो उस से जहाँ सियाह तद भी नाले में मिरे असर न होगा फिर नौहागरी कहाँ जहाँ में मातम-ज़दा 'मीर' अगर न होगा