ऐसा तूफ़ाँ है कि साहिल का नज़ारा भी नहीं डूबने वाले को तिनके का सहारा भी नहीं की दुआ दुश्मन ने आख़िर मैं न कहता था तुम्हें दोस्त जो मेरा नहीं है वो तुम्हारा भी नहीं डूबते देखा जो तूफ़ाँ में निगाहें फेर लीं दोस्तों ने मुझ को साहिल से पुकारा भी नहीं ऐ निगाह-ए-शौक़ नज़्ज़ारा ये नज़्ज़ारा है क्या आश्कारा भी है जल्वा आश्कारा भी नहीं आस रखता है करम की हो के महरूम-ए-करम बे-सहारा भी है 'पुरनम' बे-सहारा भी नहीं