ऐसा वो ज़िंदगी का क़लक़ दे गया मुझे मैं उस को भूल जाऊँ ये हक़ दे गया मुझे उस से बिछड़ के हो गया दुनिया-शनास मैं वो सारे ज़िंदगी के सबक़ दे गया मुझे पहले तो उस ने हाथ में मेरे क़लम दिया फिर चलते चलते सादा वर्क़ दे गया मुझे ख़ुद तो वो जा के ख़ाक के बिस्तर पे सो गया अपनी बुलंदियों के उफ़क़ दे गया मुझे कितने हसीन उस की मोहब्बत के रंग थे जब शाम हो गई तो शफ़क़ दे गया मुझे