ऐसे छूते हैं तसव्वुर में तुझे हम चुप-चाप जैसे फूलों को छुआ करती है शबनम चुप-चाप तर्क-ए-उल्फ़त पे भी कर जाते हैं अक्सर गुमराह मेरे ख़्वाबों को तिरे गेसू-ए-पुर-ख़म चुप-चाप जैसे करती ही नहीं तंग हमें ये मासूम कैसे जाती है शब-ए-हिज्र सहर-दम चुप-चाप कोई मिलता ही नहीं उस को सुख़न का मौज़ूअ' बैठी रहती है मेरे पास शब-ए-ग़म चुप-चाप शोरिश-ए-वक़्त ने बख़्शी नहीं जा-ए-अफ़सोस या'नी करना ही पड़ा ज़ीस्त का मातम चुप-चाप मौज-ए-हंगाम-ए-चराग़ाँ है न वो रंग-ए-अबीर शोख़ी-ए-ईद भी ख़ामोश मोहर्रम चुप-चाप मेरी आँखें हैं तिरे हुस्न की गोया तस्वीर मैं ने देखा है तिरे हुस्न का आलम चुप-चाप दौर-ए-इबलीस के ये बादा-गुसारान 'मजाज़' पीते रहते हैं जहन्नम का जहन्नम चुप-चाप