ऐसे जज़्बात में लहजे को न पत्थर कीजे गुफ़्तुगू मुझ से ज़रा आप सँभल कर कीजे ये न हो आप की तहरीर ही बाग़ी हो जाए ज़ुल्म इतना भी न क़िरतास-ओ-क़लम पर कीजे मुझ से रंजिश है तो मैदान में आ जाइए आप मेरी तस्वीर के टुकड़े न बहत्तर कीजे मेरा दा'वा है कि हालात बदल जाएँगे सामना आप जो हालात का डट कर कीजे चाहते आप हैं जो ज़ेहन कुशादा रखना बुग़्ज़-ओ-नफ़रत के ख़यालात को बाहर कीजे दूसरों पर तो करम आप का रहता है मगर इक नज़र मेरी भी जानिब मिरे दिलबर कीजे बात बनती है मोहब्बत से भी अक्सर 'रहबर' दिल में पैवस्त न अल्फ़ाज़ के नश्तर कीजे