ऐसी ही ज़मीं बना रहा था पर और कहीं बना रहा था उस बुत ने जहाँ बनाया था बुत मैं बरसों वहीं बना रहा था मैं रात बना रहा था लेकिन तारीक नहीं बना रहा था सूरज तो बना रहा था रुख़्सार महताब जबीं बना रहा था उन आँखों को चूमता हवा में कुछ और हसीं बना रहा था अफ़सोस वो बन नहीं सका जो मैं अपने तईं बना रहा था मारा गया बद-गुमानियाँ में बेचारा यक़ीं बना रहा था