चाहिएँ मुझ को नहीं ज़र्रीं क़फ़स की पुतलियाँ आशियाँ जानूँ जो होवें ख़ार-ओ-ख़स की पुतलियाँ हो गईं बे-रंग जब अगले बरस की पुतलियाँ ख़ून रो कर हम ने कीं रंगीं क़फ़स की पुतलियाँ है ये फ़ौलादी क़फ़स मुझ ना-तवाँ का क्या करूँ किस तरह तोड़ूँ नहीं हैं मेरे बस की पुतलियाँ क्या ख़ुदा की शान है आती है जब फ़स्ल-ए-बहार सब हरी हो जाती हैं मेरे क़फ़स की पुतलियाँ जब कभी कुंज-ए-क़फ़स में की है मैं ने आह-ए-गर्म मोम हो कर बह गई हैं पेश-ओ-पस की पुतलियाँ घर क़फ़स को मैं समझता हूँ असीरी को मुराद जानता हूँ अपनी आहों को हवस की पुतलियाँ पटरियाँ मेरे क़फ़स की शाख़-ए-गुल से कम नहीं लोच ये देखा न देखीं ऐसी रस की पुतलियाँ गूँजने लगता है ये भी जब फ़ुग़ाँ करता हूँ मैं नस्ब हैं मेरे क़फ़स में क्या जरस की पुतलियाँ देखिए शौक़-ए-असीरी में जकड़ने के लिए हो गईं रेशम का लच्छा सब क़फ़स की पुतलियाँ रो रही है देख कर लैला जो उस को ऐ 'शरफ़' पसलियाँ मजनूँ की हैं मेरे क़फ़स की पुतलियाँ