ऐसी जमाई तू ने मिरे दिल पे धाक बस हर-दम है तेरी याद तिरा इंहिमाक बस वो आसमाँ का चाँद है तू है चराग़-ए-राह तू दूर से ही देख उसे उस को ताक बस तीर-ओ-कमाँ किसी के हमें क्या मिटाएँगे तेग़-ए-नज़र से होते हैं हम तो हलाक बस मिल जाएगा क़रार दिल-ए-बे-क़रार को मुझ को दिखा दे अपना रुख़-ए-ताबनाक बस है मुब्तला-ए-दर्द-ओ-अलम मेरी ज़िंदगी बिन तेरे कट रही है मगर ठीक-ठाक बस कुछ इस में लुत्फ़ है न मज़ा है न कैफ़ है क़िस्सा ग़रीब का है बहुत दर्दनाक बस ख़ुशबू नसीब होती है उस को न गुल 'क़मर' सहरा-नशीं के हिस्से में आती है ख़ाक बस