दिल का सुकून ढूँढने जाए बशर कहाँ ऐसा नगर है कौन सा ऐसा है दर कहाँ तुम ने तो कह दिया कि चले जाओ बज़्म से ये तो बता दो हम को कि जाएँ किधर कहाँ उस की गली को छोड़ के आ तो गए मगर अब सोचते हैं गुज़़रेंगे शाम-ओ-सहर कहाँ बैठो हमारे पास करो हम से दिल की बात हर आदमी मिलेगा तुम्हें मो'तबर कहाँ फैली हुई है धूप मसाइब की दूर तक अब साया-दार राह में मेरी शजर कहाँ जब चारागर ही कोई नहीं तेरे शहर में ले कर मैं जाऊँ अपना ये ज़ख़्म-ए-जिगर कहाँ किसी की 'क़मर' तलाश है किसी की है आरज़ू निकले हो इतनी रात में तन्हा इधर कहाँ