ऐसी करख़्त धूप थी चेहरे उजड़ गए कुछ लोग अपने जिस्म के अंदर सिकुड़ गए सूरज ने बढ़ के थाम लिया है नज़र का हाथ जब भी नज़र के पाँव ज़मीं से उखड़ गए लफ़्ज़ों की तोप सोच के हथियार थाम कर आपस में ख़ुद ही फ़न के निगहबान लड़ गए जब से पहन लिया है ग़मों ने नया लिबास मल्बूस चाहतों के बहुत मैले पड़ गए मेरे बदन में ज़हर तबस्सुम का घोल कर वो कौन थे जो मुझ से अचानक बिछड़ गए सच्चाई के लबों पे रखे उस ने लब मगर कुछ लोग बे-सबब ही 'सबा' से बिगड़ गए