ऐसी तन-आसानी से By Ghazal << अपने बाद हक़ीक़त या अफ़्स... अगर इस शहर की आब ओ हवा तब... >> ऐसी तन-आसानी से बाज़ आ जा नादानी से जीना मुश्किल होता है इतनी नुक्ता-दानी से सहरा भी शरमाता है इस दिल की वीरानी से लाज कहाँ तक आएगी ख़्वाबों की उर्यानी से प्यास नहीं बुझ पाती है दरिया की दरबानी से पीछा कौन छुड़ा पाया इस दुनिया-दीवानी से Share on: