ऐसी ठहरी है रुत ख़िज़ाओं की हम को हसरत रही है छाँव की दिल की दुनिया उजाड़ कर इंसाँ खोज करता फिरे ख़लाओं की बाम पर देख कर परिंदों को याद आई है फिर से गाँव की गोलियों की सदाएँ सुनते ही धड़कनें थम गई हैं माओं की किस को फ़ुर्सत कि दास्ताँ लिक्खे सिसकियाँ ले रही हवाओं की आयत-ए-वस्ल दम करो इस पर ले के मिट्टी किसी के पाँव की दिल के गुम्बद में क़ैद है 'आसिफ़' गूँज भूली हुई सदाओं की