और भी कोई रब से मिलने का रस्ता है बाबा-जी दुनिया को हम खो न बैठें जी डरता है बाबा-जी कुल और जुज़ की राम कहानी मुझ को समझ नहीं आती सुनते हैं क़तरा भी दरिया हो जाता है बाबा-जी धूप की दस्तक कैसे उस को बाहर ले कर आती है पेड़ में ही पोशीदा क्या साया होता है बाबा-जी आप ने हम को बतलाया था मौत तो इक दरवाज़ा है लोग समझते हैं कि बंदा मर जाता है बाबा-जी मेरी सोचों का लावा ही मुझ को ज़िंदा रखता है वर्ना बर्फ़ीले लहजों से ख़ूँ जमता है बाबा जी मैं ने जब भी सोचा है बस अपनी ज़ात का सोचा है मेरा लिक्खा कैसे ज़िंदा रह सकता है बाबा-जी इसी लिए तो 'आसिफ़' भी इक चुप सी साधे फिरता है कौन यहाँ पर उस की बातों को सुनता है बाबा-जी