अज़ाँ से नारा-ए-नाक़ूस पैदा हो नहीं सकता अभी कुछ रोज़ तक का'बा कलीसा हो नहीं सकता ज़बाँ से जोश-ए-क़ौमी दिल में पैदा हो नहीं सकता उबलने से कुआँ वुसअ'त में दरिया हो नहीं सकता बहुत पिन्हाँ रही दिल में ख़लिश ख़ार-ए-तअ'स्सुब की मगर अब इम्तिहाँ के वक़्त पर्दा हो नहीं सकता गिराँ है जिंस और निय्यत ख़रीदारों की अबतर है अब इस बाज़ार में उल्फ़त का सौदा हो नहीं सकता