अजब आराम है जिस ने थकन से चूर कर डाला सफ़र की तिश्नगी से जिस्म को मामूर कर डाला उसी ने ला-मकाँ की तीरगी को इर्तिक़ा बख़्शा मकाँ को एक दिन जिस ने अचानक नूर कर डाला तख़य्युल को नज़र आने लगे थे चाक लफ़्ज़ों के शिकस्ता पैरहन सालिम बदन से दूर कर डाला किनारे हाथ मलते रह गए दरिया के पानी में बहुत घुल-मिल गए जिस से उसी ने दूर कर डाला ज़माना मुन्हरिफ़ होने लगा कोहना रिवायत से हुवल-हक़ भी कहा जिस ने उसे मंसूर कर डाला गुज़रते वक़्त ने टाँके लगाए मेरे ज़ख़्मों को रुका कुछ सोच कर और फिर उन्हें नासूर कर डाला उतर कर सत्ह से गहराई में रिश्ते नए ढूँडूँ समुंदर की रिफ़ाक़त ने मुझे मजबूर कर डाला