ज़िंदगी से जो वास्ता रखिए मर के जीने का हौसला रखिए मिलने-जुलने का सिलसिला रखिए यूँ न अपनों से फ़ासला रखिए उस के दर तक फ़क़त जो ले जाए एक ऐसा भी रास्ता रखिए शहर-ए-दिल के हमीं हैं शहज़ादे कुछ तो हम से भी राब्ता रखिए वस्ल की आस तो है नाज़ुक शय जैसे पानी का बुलबुला रखिए दिल की धड़कन से मात खानी है यार लोगों से क्या गिला रखिए हक़-परस्ती के साथ नज़रों में कर्बला का भी मा'रका रखिए