अजब अजीब ग़म-ए-एहतिमाल रखते हुए किसी का ख़्वाब किसी का ख़याल रखते हुए अना भी कोह-ए-गिराँ की तरह है फिर दरपेश तिरे हुज़ूर तलब का सवाल रखते हुए कोई ख़ज़ीना-ए-राहत न अपने काम आया दराज़-ए-दिल में ज़रा सा मलाल रखते हुए मैं आफ़्ताब हूँ लेकिन इक ए'तिमाद के साथ चमक रही हूँ मैं रंज-ए-ज़वाल रखते हुए तमाम उम्र तो रखनी नहीं ये रंजिश-ए-दिल ये सोच लेता वो शीशे में बाल रखते हुए