अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है

By yasin-ali-khan-markazNovember 26, 2020
अजब भूल ओ हैरत जो मख़्लूक़ को है
ख़ुदा की तलब शिर्क की जुस्तुजू है
शराब-ए-मोहब्बत में मख़मूर हूँ मैं
पियाला भरा है मुलब्बब सुबू है


पता एक का दो में क्यूँ कर मिलेगा
जो कसरत फ़ना हो तो ख़ुद तू ही तू है
नहीं ग़ैर कोई तशख़्ख़ुस का पर्दा
मन-ओ-तू फ़क़त ग़ैर की गुफ़्तुगू है


है ख़ुद आप मौजूद हर यक सिफ़त से
जुदाई नहीं इस में कुछ मू-ब-मू है
सिफ़त बस्त-ओ-क़ाबिज़ की तुख़्म-ओ-शजर है
जो बू है सो गुल है जो गुल है सो बू है


वो पीर-ए-तरीक़त है कामिल उसी को
ख़ुदा इस के हर आन में रू-ब-रू है
वजूद एक है सूरत उस की मुग़य्यर
है जल्वा उसी का न मैं और तू है


तू 'मरकज़' है आलम में पैदा-ओ-ज़ाहिर
बनाया बनाता है जो कुछ कि तू है
38139 viewsghazalHindi