बना हुआ था कहीं आब-दान काग़ज़ पर थी इतनी प्यास कि रख दी ज़बान काग़ज़ पर किराएदार की आँखों में आ गए आँसू बनाए बैठे थे बच्चे मकान काग़ज़ पर तुम्हारे ख़त में नज़र आई इतनी ख़ामोशी कि मुझ को रखने पड़े अपने कान काग़ज़ पर तमाम उम्र गुज़ारी है धूप में शायद बना रहा है कोई साएबान काग़ज़ पर उठा लिया है क़लम अब तो मैं ने भी 'यासिर' उतार डालूँगा सारी थकान काग़ज़ पर