अजब नहीं कि ज़मीं पाँव से सरक जाए हमारे सर पे कई दिन से आसमाँ भी नहीं शरीफ़ रह के गुज़ारी गई जवानी का अगरचे फ़ाएदा कम है मगर ज़ियाँ भी नहीं उसे क़रीब से देखे हुए ज़माना हुआ सुना है देखने वालों से अब जवाँ भी नहीं मैं कोई देर को आया हूँ इस ख़राबे में मिरी नशिस्त नहीं है मिरा मकाँ भी नहीं 'वक़ास' ले के कहाँ जाए अपनी ग़ुर्बत को कि इस लिए तो कोई दूसरा जहाँ भी नहीं