डर के बैठा हूँ सर-निगूँ वहशत मुझ को बतला मैं क्या करूँ वहशत हिज्र काफ़ी है दिल-लगी के लिए अब मैं तेरा भी क्या बनूँ वहशत चाहे जितना सँवार लूँ ख़ुद को आइने में मगर लगूँ वहशत जा चली जा कहीं मैं छुप जाऊँ तब तू आना मैं जब कहूँ वहशत दर खटकने पे मैं ने जब पूछा कोई कहने लगा मैं हूँ वहशत आज तितली के साथ बैठक है आज थोड़ा मिले सुकूँ वहशत