अजब सी बे-कली से चूर कोई By Ghazal << जो ग़म में जलते रहे उम्र-... उम्र गुज़री है बद-गुमानी ... >> अजब सी बे-कली से चूर कोई कुछ अपने दिल से है मजबूर कोई कभी ऐसी अनोखी सोच उभरे कि जैसे सोच पर मा'मूर कोई वो जिन के दम से रौशन ज़िंदगी है दिलों में उन के होगा नूर कोई तुम्हें कैसे भुलाया जा सकेगा यहाँ ऐसा नहीं दस्तूर कोई Share on: