अजब सुकूत सा तारी है दिल के ख़ानों में कि धड़कनें भी मिरी गूँजती हैं कानों में ज़रा सी तीरगी देखें जो आसमानों में तुयूर लौटने लगते हैं आशियानों में इक एक कर के सभी कूच करते जाते हैं कोई परेत है क्या शह्र के मकानों में वो जिन में देखने से दिल का हाल दिख जाए कोई वो आइने रख दे निगार ख़ानों में दरून-ए-दिल जो तिरी याद के दफ़ीने हैं बहुत से क़ीमती मोती हैं इन ख़ज़ानों में सुख़न के शह्र में कुछ भी नया नहीं आया पुराना माल ही बिकता है सब दुकानों में किसी भी हाल में उस को मना के ले आऊँ पलट सकूँ जो मैं गुज़रे हुए ज़मानों में गुलाब सूख के शाख़ों से झड़ गए कब के ये चंद ख़ार ही बाक़ी हैं फूलदानों में कभी जो प्यार मोहब्बत की बात निकलेगी हमारा नाम भी आएगा दास्तानों में वो जिस में जान से बढ़ कर थी यार की इज़्ज़त 'ज़की' वो आशिक़ी मिलती है अब फ़सानों में