अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के कि मुस्कुराया ख़ुदा भी सितारा वा कर के गदा-गरी भी इक उस्लूब-ए-फ़न है जब मैं ने उसी को माँग लिया उस से इल्तिजा कर के शब-ए-फ़िराक़ के हर जब्र को शिकस्त हुई कि मैं ने सुब्ह तो कर ली ख़ुदा ख़ुदा कर के ये सोच कर कि कभी तो जवाब आएगा मैं उस के दर पे खड़ा रह गया सदा कर के ये चारा-गर हैं कि इक इजतिमा-ए-बद-ज़ौक़ाँ वो मुझ को देखें तिरी ज़ात से जुदा कर के ख़ुदा भी उन को न बख़्शे तो लुत्फ़ आ जाए जो अपने-आप से शर्मिंदा हूँ ख़ता कर के ख़ुद अपनी ज़ात पे तो ए'तिमाद पुख़्ता हुआ 'नदीम' यूँ तो मुझे क्या मिला वफ़ा कर के