अजब ठहराव था जिस में मसाफ़त हो रही थी

अजब ठहराव था जिस में मसाफ़त हो रही थी
रवाना भी नहीं था और हिजरत हो रही थी

बनाया जा रहा था कैनवस पर ज़र्द सूरज
उभारा जा रहा था नक़्श हैरत हो रही थी

कहीं जाता नहीं था मैं कहीं आता नहीं था
यक़ीं आता नहीं था ऐसी हालत हो रही थी

मिरा उस के बिना तो जी ज़रा लगता नहीं था
उदासी लौट आई थी मसर्रत हो रही थी

चराग़ एक एक कर के रौशनी करने लगे थे
मुझे इन सब चराग़ों से मोहब्बत हो रही थी

नया इक बाग़ था और इस को काटा जा रहा था
परिंदों को अभी पेड़ों की आदत हो रही थी

बिछड़ जाने का कुछ कुछ ख़ौफ़ भी होने लगा था
मुझे उस के रवय्ये पर भी हैरत हो रही थी

नहीं थी ज़िंदगानी भी वहाँ हसब-ए-तमन्ना
मोहब्बत भी वहाँ हस्ब-ए-ज़रूरत हो रही थी

ये आँसू तो न थे जो बह रहे थे हिज्र-ए-गुल में
ये ख़ुश्बू थी जो आँखों से रिवायत हो रही थी

मुझे ख़ुद में कोई सहरा मयस्सर आ गया था
उड़ाई जा रही थी ख़ाक वहशत हो रही थी

मुकम्मल बद-गुमानी हो गई थी उस को 'सय्यद'
पलटने में मुझे भी अब सुहूलत हो रही थी


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