अज़-बस भला लगे है तू मेरे यार मुझ को बे-इख़्तियार तुझ पर आता है प्यार मुझ को सय्याद का बुरा हो जिस के तग़ाफ़ुलों ने कुंज-ए-क़फ़स में रक्खा फ़स्ल-ए-बहार मुझ को जाऊँ किधर को यारो मानिंद-ए-सैद-ए-ख़रगह मिज़्गाँ ने कर रखा है उस की शिकार मुझ को इस रफ़्तगी पे मुझ से करता है तू तग़ाफ़ुल डाँटे है तिस पे उल्टा फिर बार बार मुझ को मेरा क़ुसूर क्या है साने को चाहिए था मिक़दार-ए-हुस्न देता सब्र-ओ-क़रार मुझ को फ़ित्ना है या परी है जादू है या बला है आँखों से ये किया है किस की दो-चार मुझ को ऐ 'मुसहफ़ी' तसव्वुर उस का जो सामने है आता नहीं शब-ए-ग़म यक-दम क़रार मुझ को