हर दुश्मन-ए-वफ़ा मुझे महबूब हो गया जो मोजज़ा हुआ वो बहुत ख़ूब हो गया इश्क़ एक सीधी-सादी सी मंतिक़ की बात है रग़बत मुझे हुई तो वो मर्ग़ूब हो गया दीवानगी बग़ैर हयात इतनी तल्ख़ थी जो शख़्स भी ज़हीन था मज्ज़ूब हो गया मुजरिम था जो वो अपनी ज़ेहानत से बच गया जिस से ख़ता न की थी वो मस्लूब हो गया वो ख़त जो उस के हाथ से पुर्ज़े हुआ 'अदम' दुनिया का सब से क़ीमती मक्तूब हो गया