अज़ाब-ए-हिज्र से अंजान थोड़ी होता है ये दिल अब इतना भी नादान थोड़ी होता है ये ज़िंदगी है बहुत कुछ यहाँ पे मुमकिन है कि कुछ न होने का इम्कान थोड़ी होता है ये दिल के ज़ख़्म छुपा कर जो मुस्कुराते हैं तो मेरे दोस्त ये आसान थोड़ी होता है कभी-कभार तो बिदअत भी हो ही जाती है हर एक लम्हा तिरा ध्यान थोड़ी होता है वो जिस के पास मोहब्बत भी हो, वफ़ा भी हो भला वो बे-सर-ओ-सामान थोड़ी होता है तिरी वफ़ा में कमी कुछ तो आई है कि ये दिल बिला-जवाज़ परेशान थोड़ी होता है इधर उधर से दलीलें उठानी पड़ जाएँ जो इतना कच्चा हो, ईमान थोड़ी होता है