कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए वो शख़्स फिर से मिरे राब्ते में आ जाए उसे कुरेद रहा हूँ तरह तरह से कि वो जिहत जिहत से मिरे जाएज़े में आ जाए कमाल जब है कि सँवरे वो अपने दर्पन में और उस का अक्स मिरे आईने में आ जाए किया है तर्क-ए-तअल्लुक़ तो मुड़ के देखना क्या कहीं न फ़र्क़ तिरे फ़ैसले में आ जाए दिमाग़ अहल-ए-मोहब्बत का साथ देता नहीं उसे कहो कि वो दिल के कहे में आ जाए वो मेरी राह में आँखें बिछाए बैठा हो ये वाक़िआ भी कभी देखने में आ जाए वो माहताब-ए-ज़माना है लोग कहते हैं तो उस का नूर मिरे शब-कदे में आ जाए बस इक 'फ़राग़' बचा है जुनूँ-पसंद यहाँ कहो कि वो भी मिरे क़ाफ़िले में आ जाए