अज़ल की याद में मैं गर्म-ए-आह-ए-सर्द हुआ लगी थी चोट कभी और आज दर्द हुआ गुज़र गया ये निगाहों से तेरा मरकब-ए-हुस्न तमाम आलम-ए-दिल इक क़दम में गर्द हुआ ग़लत कि क़ाबिल-ए-दार-ओ-रसन हों अहल-ए-हवस बँधाई इश्क़ ने हिम्मत जिसे वो मर्द हुआ परे वो अक़्ल से हैं इस यक़ीं ने रोक लिया कभी जो वहम के पीछे में रह-नवर्द हुआ तमाम तजरबा-ए-गर्म-ओ-सर्द-ए-इश्क़ कहाँ कुछ अश्क-ए-गर्म हुआ दिल कुछ आह-ए-सर्द हुआ नक़ाब उन की उठी थी कि हम हुए बेहोश निगाह उन से लड़ी थी कि दिल में दर्द हुआ करम से अपने मिटा दो कि बे-क़रार है इश्क़ मिरा वजूद कि दुनिया के दिल का दर्द हुआ शुहूद-ए-बे-जिहत-ओ-कैफ़ मुंसलिक 'राग़िब' जुनूँ उसे जो किसी सम्त रह-नवर्द हुआ