अजीब आदत है बे-सबब इंतिज़ार करना शब-ए-अलम में विसाल के दिन शुमार करना नहीं है आसाँ अदावतों में असीर रहना रविश ज़माने से मुख़्तलिफ़ इख़्तियार करना न बे-नियाज़-ए-क़ुयूद-ए-आदाब-ए-इश्क़ रहना न अपने अतराफ़ मस्लहत का हिसार करना न अहल-ए-दानिश के दाम-ओ-दाना का सैद होना न शहर वालों के लुत्फ़ का ए'तिबार करना जो महफ़िलों में शहीद-ए-पिंदार-ए-हुस्न होना तो ख़ल्वतों में ग़ज़ाल मअनी शिकार करना बुझे चराग़ों को ज़ेब-ए-दामान-ओ-जेब रखना पिघलती शमएँ क़तार-अंदर-क़तार करना