अजीब हुस्न है उन सुर्ख़ सुर्ख़ गालों में मय-ए-दो-आतिशा भर दी है दो पियालों में सुनें जो आप तो सोना हराम हो जाए तमाम रात गुज़रती है जिन ख़यालों में उम्मीद ओ यास ने झगड़े में डाल रक्खा है न जीने वालों में हम हैं न मरने वालों में चमन में गुल भी हिना भी मगर नसीब की बात कोई तो सर चढ़े कोई हो पाएमालों में नसीम-ए-शम्अ-ए-लहद को ज़रा बचाए हुए यही है एक ग़रीबों के रोने वालों में यहाँ ख़िज़ाँ का न खटका न ख़ौफ़ गुलचीं का बहार गुल में रहे या तुम्हारे गालों में नहीं है लुत्फ़ कि ख़ल्वत में ग़ैर शामिल हो उठा दो शम्अ को ये भी है जलने वालों में चुभेगा क्या दिल-ए-पुर-ख़ूँ का राज़ आँखों से जो होगा शीशे में आएगा वो पियालों में हज़ार शुक्र कि हम नक़्स में हुए कामिल 'जलील' रह गई बात अपनी ज़ी-कमालों में