सर-फिरी पागल हवा का तेज़ झोंका आएगा हसरतों के ख़ुश्क पत्तों को उड़ा ले जाएगा दूधिया आकाश में किस को सदा देता है तू तेरे माज़ी का परिंदा अब न वापस आएगा छोटी छोटी ख़्वाहिशों का क़त्ल होते देख कर उम्र का एहसास रुख़ पर गर्द बन के छाएगा वक़्त उस से छीन लेगा ख़ुद-पसंदी का ग़ुरूर हाँ यक़ीनन वो ख़ुदा बन कर बहुत पछताएगा वो है सर-ता-पा मुजस्सम इक फ़्रांसीसी शराब नश्शा बन कर जिस्म उस का ज़ेहन पर भी छाएगा ख़्वाहिशों के जंगलों में लज़्ज़तों के पेड़ हैं जिन के साए में मुसाफ़िर देर तक सुसताएगा आप अपनी आग में हम हाथ तापेंगे 'अदीब' जब दिसम्बर साथ अपने बर्फ़-बारी लाएगा