अजीब शख़्स है कैसी ये जुस्तुजू है उसे पलक से ख़ार उठाने की आरज़ू है उसे वो ख़्वाहिशों के दिए हर क़दम जलाता है तलाश कौन से चेहरे की चार सू है उसे वो ताक़ ताक़ जो यादों के फूल रखता है ये किस जुनून की दीवार रू-ब-रू है उसे ज़माने भर के सितारे हैं आँख के आगे बस एक नाम ही क्यूँ हर्फ़-ए-गुफ़्तुगू है उसे क्यूँ एक ख़्वाब को आँखों में ले के फिरता है क्यूँ एक दर्द का एहसास कू-ब-कू है उसे