अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी रक़ीब-ए-जाँ भी है क़ातिल भी है मसीहा भी उदास उदास हरीम-ए-निगाह बे-मंज़र धुआँ धुआँ ख़लिश-ए-राएगाँ से दुनिया भी दिल-ओ-दिमाग़-ओ-नफ़स तिश्नगी से हैं रौशन इसी की आग में जलते हैं शहर-ओ-सहरा भी वही हवा-ए-जहाँ-ताब मो'तबर है कि जो जिला के छोड़ गई है चराग़-ए-फ़र्दा भी तलब में मुझ से तो लम्हा भी इक नहीं कटता इसी ख़ुमार ने काटे हैं कोह-ओ-दरिया भी तिरे ख़याल से ख़ल्वत भी अंजुमन है मुझे तिरे ख़याल से हों अंजुमन में तन्हा भी फ़ज़ा-ए-ख़्वाब-ए-तरब ने जगा दिया मुझ को लगी जो आँख तो होने लगा सवेरा भी