नाकामी-ए-क़िस्मत का गिला छोड़ दिया है तदबीर से तक़दीर का रुख़ मोड़ दिया है वो जुर्म भी इक अज़्मत-ए-किरदार है जिस ने टूटा हुआ इक रिश्ता-ए-दिल जोड़ दिया है दिल डूब चला आख़िर-ए-शब ख़ुश्क हैं आँखें आ जा कि सितारों ने भी दम तोड़ दिया है बहते हुए देखे हैं उधर वक़्त के धारे रुख़ हम ने इरादों का जिधर मोड़ दिया है फ़नकार का एहसास-ए-ज़िया-बार था जिस में हालात ने वो शीश-महल तोड़ दिया है अंदाज़-ए-ग़ज़ल आप का क्या ख़ूब है 'रज़्मी' महसूस ये होता है क़लम तोड़ दिया है