अजीब तिश्नगी हर सू मिरे बदन में है किसी सराब का आहू मिरे बदन में है किसी से इश्क़ सा होने को है ये तुम हो क्या नए गुलाब की ख़ुशबू मिरे बदन में है कभी किसी से भी खुल कर मैं मिल नहीं सकता मुझे ख़बर है कि बस तू मिरे बदन में है महल को छोड़ के आ जाती हैं ज़ुलेखाएँ न जाने कौन सा जादू मिरे बदन में है सदाक़तें खनक उठती हैं बात जब निकले वही ज़बान वो तालू मिरे बदन में है मिरे क़रीब जो आओ तो दिल बड़ा रखना बुरी-भली घिरी हर ख़ू मेरे बदन में है सियासतों ने गो शैताँ ही कर दिया मुझ को नहीं मैं भूलता साधू मिरे बदन में है मिरे मुक़ाबले हूरों का क़ाफ़िला 'अज़हर' बला से ज़ब्त है क़ाबू मेरे बदन में है