सब बातें ला-हासिल ठहरीं सारे ज़िक्र फ़ुज़ूल गए याद रहा इक नाम तुम्हारा बाक़ी सब कुछ भूल गए मैं ने तेरा नाम मिटा कर तेरा चेहरा क्या भूला बीच समुंदर कश्ती टूटी हाथों से मस्तूल गए तेरे साथ तिरे रस्ते में हँसते-बोलते साथी थे मेरे साथ मिरे रस्ते में काँटे और बबूल गए शाम परिंदे लौट आए तो हम तिरी खोज में चल निकले फिर जंगल में रात हुई और घर का रस्ता भूल गए बहस-भरी मुलाक़ात के ब'अद वो आख़िर बस्ती छोड़ गया सब तावीलें ख़ाक हुईं मिरे सारे लफ़्ज़ फ़ुज़ूल गए हवा को क्या मालूम हो 'अज़हर' हवा के एक ही झोंके से कितनी शाख़ें टूट गईं और कितने पत्ते झूल गए