अजीब ज़ुल्म है सय्याद की हवस की तरह सुलूक करता है मुझ से चमन क़फ़स की तरह हमारे दम से हैं महफ़ूज़-ओ-शाद बर्ग-ओ-समन हमें न फेंक चमन से यूँ ख़ार-ओ-ख़स की तरह मैं अपने वास्ते अमृत कहाँ जुटाता हूँ मैं अपने रस के ख़ज़ाने पे हूँ मगस की तरह ज़रूर तू है नुमायाँ सितमगरी में ज़रूर हमारा दर्द भी बढ़ता है तेरे जस की तरह कोई ख़ुलूस मिला कर अगर पिलाए तो सुरूर छाछ भी देती है सोमरस की तरह किसी ने जाल बिछाया है ग़ौर से देखो कि शाख़ शाख़ गुलिस्ताँ में है चकस की तरह बहुत अजीब कहानी है मेरे आलम की बना सिफ़र से हूँ मैं एक अनेक दस की तरह अगर मैं हूँ तो मैं हूँ और अगर गया तो गया मैं मो'तबर नहीं ना-मो'तबर नफ़स की तरह न जाने कौन से जंगल का जीव है वाइज़ शराब पीता है कम-बख़्त बुल-हवस की तरह ये बुज़दिली का तिलिस्म अब तो तोड़ दे 'कुंदन' कि बाँग देती है पाज़ेब भी जरस की तरह