अजनबी बूद-ओ-बाश के क़ुर्ब-ओ-जवार में मिला बिछड़ा तो वो मुझे किसी और दयार में मिला मेरे लिए वो कम-नुमा हैरत-ए-गुल बना रहा आँख के वस्त में सदा एक ग़ुबार में मिला बाग़ था जिस तरह सजा उस में किसी का हाथ था जैसा भी कोई फूल था एक क़तार में मिला या तो वो एक ख़्वाब था टूट के जुड़ता ही रहा या फिर ख़लल निगाह का आँख के तार में मिला अर्सा वो मेरे इश्क़ का निकला कोई फ़रेब सा मैं था कहाँ वो ख़ुद-नुमा ख़ुद ही से प्यार में मिला इतनी ज़्यादा भीड़ थी बात न उस से हो सकी पल भर वो तेज़ वक़्त की राहगुज़ार में मिला बर्फ़ थी कब थी वो हवा घर से यूँही निकल पड़ा जिस्म के कटने का मज़ा जाड़े की धार में मिला शहर वो था अजीब सा जो भी वहाँ पे शख़्स था बंद बहुत बुरी तरह एक हिसार में मिला ये मिरे माह ये बरस मेरी हयात-ए-यक-नफ़स मेरा जहान-ए-ख़ार-ओ-ख़स मुझ को उधार में मिला फूल कुछ इस तरह खिला दिल भी ज़रा सा कट गया थोड़ा सा रंग ख़ून का रंग-ए-बहार में मिला शाम ही से मह-ए-तमाम चढ़ने लगा फ़लक का बाम आख़िर-ए-शब ये नर्म-गाम एक उतार में मिला 'शाहीं' गुलों का क़ाफ़िला जिस में शरीक वो भी था एक जगह रुका हुआ वादी-ए-ख़ार में मिला