अक़्ल का ज़र्फ़ जुदा होश का पैमाना जुदा हुस्न और इश्क़ का दोनों से है अफ़्साना जुदा इश्क़ का बार-ए-अमानत कहाँ कम-माया कहाँ दीन बुलबुल का जुदा मशरब-ए-परवाना जुदा दिल में है किर्मक-ए-शब-ताब के भी आग निहाँ लेकिन इस आग से है सोज़िश-ए-परवाना जुदा कब बुरे वक़्त में होता है किसी का कोई शम्अ' गुल होते ही हो जाता है परवाना जुदा गुलशन-ए-दहर में जब बू-ए-वफ़ा अन्क़ा हो क्या करे गर न रहे सब्ज़ा-ए-बेगाना जुदा इश्क़-बाज़ों से नहीं बुल-हवसों को निस्बत उन का मेआ'र जुदा इन का है पैमाना जुदा तेग़-ए-क़ातिल के रहे सामने हम सीना-सिपर मरते मरते न हुई हिम्मत-ए-मर्दाना जुदा चश्म-ए-बीना में हैं ये दोनों जगह मंज़िल-ए-यार न रह-ए-का'बा जुदा न रह-ए-बुत-ख़ाना जुदा ज़र्रे ज़र्रे में है कौनैन के उस का ही ज़ुहूर दोनों आलम से है फिर जल्वा-ए-जानाना जुदा मेरी ही आँखों पे ग़फ़्लत का पड़ा था पर्दा शाहिद-ए-हुस्न-ए-अज़ल मुझ से हुआ था न जुदा ज़ब्त-ए-उल्फ़त कहीं मुमकिन है तुनक-ज़र्फ़ों से ताबिश-ए-शम्अ' जुदा सोज़िश-ए-परवाना जुदा नाला-ए-आतिश-ए-ग़म और भड़क उठता है शम्अ' के हो जो तसव्वुर में भी परवाना जुदा है सुख़न में मिरे इक जिद्दत-ए-ताज़ा 'तालिब' मेरा मज़मूँ जुदा उनवाँ जुदा अफ़्साना जुदा