अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो मिशअल-ए-दिल को चिता फ़ानी चराग़ाँ गुल करो दिल लगाओ एक से दोनों जहाँ जिस का ज़ुहूर बुल-हवस हो कर न हरगिज़ आदत-ए-बुलबुल करो मैं मोहब्बत सूँ हमेशा इश्क़ में सरशार हूँ नश्शा-ए-फ़ानी सूँ मत ख़ातिर को ख़ू-ए-मुल करो ज़ुल्फ़-ओ-आरिज़ है मुनव्वर देख वज्हुल्लाह का तुम न को सैर-ए-चमन और ख़्वाहिश-ए-सुम्बुल करो क़ौल पर ला-तक़्नतू के रहो हमेशा जम्अ'-दिल मत तुम्हें ख़ातिर परेशाँ सूरत-ए-काकुल करो ख़ौफ़ मत रक्खो किसी दुश्मन से दिल में यक रती पुश्त-बाँ अपना हमेशा साहब-ए-दुलदुल करो ऐ 'अलीमुल्लाह' अव्वल इश्क़ में मिस्मार हो आशिक़ों में बा'द अपने आशिक़ी का ग़ुल करो