बदन से रिश्ता-ए-जाँ मो'तबर न था मेरा मैं जिस में रहता था शायद वो घर न था मेरा क़रीब ही से वो गुज़रा मगर ख़बर न हुई दिल इस तरह तो कभी बे-ख़बर न था मेरा मैं मिस्ल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना जिस चमन में रहा वहाँ के गुल न थे मेरे समर न था मेरा न रौशनी न हरारत ही दे सका मुझ को पराई आग में कोई शरर न था मेरा ज़मीं को रू-कश-ए-अफ़्लाक कर दिया जिस ने हुनर था किस का अगर वो हुनर न था मेरा कुछ और था मिरी तश्कील ओ इर्तिक़ा का सबब मदार सिर्फ़ हवाओं पे गर न था मेरा जो धूप दे गया मुझ को वो मेरा सूरज था जो छाँव दे न सका वो शजर न था मेरा नहीं कि मुझ से मिरे दिल ने बेवफ़ाई की लहू से रब्त ही कुछ मो'तबर न था मेरा पहुँच के जो सर-ए-मंज़िल बिछड़ गया मुझ से वो हम-सफ़र था मगर हम-नज़र न था मेरा इक आने वाले का मैं मुंतज़िर तो था 'अकबर' हर आने वाला मगर मुंतज़िर न था मेरा