आँखें खुली खुली हैं नज़र ले गया कोई दीवार-ओ-दर तो हैं वही घर ले गया कोई सारी ज़मीन हो गई बे-आब-ओ-बे-ग्याह वो चहचहे वो लुत्फ़-ए-सहर ले गया कोई मंज़र हद-ए-निगाह तलक लाल लाल है हर सम्त से ग्रीन कलर ले गया कोई अब के समुंदरों का सफ़र बे-मज़ा रहा तूफ़ान-ए-ख़ौफ़ और भँवर ले गया कोई उग आईं रात-भर में फ़लक-बोस बिल्डिंगें 'सैफ़ी' हवेलियों का खंडर ले गया कोई