आक़िबत ना-शनास हूँ और हूँ ग़म ये है बे-लिबास हूँ और हूँ तू ज़माना-शनास था और था मैं मोहब्बत-शनास हूँ और हूँ तू बहुत दूर था और आज नहीं मैं तिरे आस-पास हूँ और हूँ लोग मायूस हो के जा भी चुके और मैं कब से उदास हूँ और हूँ लहर होता तो बन के मिट जाता मैं किनारे की घास हूँ और हूँ सारा मज़मून कौन पढ़ता है मैं तो बस इक़्तिबास हूँ और हूँ मेरे होने की सूरतें क्या हैं मैं फ़क़त अपना मास हूँ और हूँ बंदगी मुझ को रास हो कि न हो मैं ख़ुदाई को रास हूँ और हूँ मुझ पे इक बोझा है दोई मेरी अपने होने की प्यास हूँ और हूँ