अक्स भी कब शब-ए-हिज्राँ का तमाशाई है एक मैं आप हूँ या गोशा-ए-तन्हाई है दिल तो रुकता है अगर बंद-ए-क़बा बाज़ न हो चाक करता हूँ गरेबाँ को तो रुस्वाई है ताक़त-ए-ज़ब्त कहाँ अब तो जिगर जलता है आह सीने से निकल लब पे मिरे आई है मैं तो वो हूँ कि मिरे लाख ख़रीदार हैं अब लेक इस दिल से धड़कता हूँ कि सौदाई है दिल-ए-बेताब 'फ़ुग़ाँ' उम्मत-ए-अय्यूब नहीं न उसे सब्र है हरगिज़ न शकेबाई है